Thursday, June 4, 2009

Aabhaar

Alas I relenquish my inhibitions and join the blogger's gang, I must say it is not as easy as it looks but once you get going you dont feel like restricting the flow. I start the process by sharing a fantabulous poetry by Shivmangal Singh 'Suman' which miror's my thoughts:


जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं।दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रसाद –जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई।पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद –जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
जो साथ न मेरा दे पाये, उनसे कब सूनी हुई डगर?मैं भी न चलूँ यदि तो क्या, राही मर लेकिन राह अमर।इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गये स्वाद –जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।
कैसे चल पाता यदि न मिला होता मुझको आकुल अंतर?कैसे चल पाता यदि मिलते, चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर!आभारी हूँ मैं उन सबका, दे गये व्यथा का जो प्रसाद –जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद।

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